विवाह रेखा (Marriage Line) कौन सी होती है – हृदय रेखा (Heart Line) के ऊपर कनिष्ठिका अँगुली (आखिरी अँगुली या सबसे छोटी अँगुली) के नीचे और बुध पर्वत के पास एक या एक से अधिक रेखाएँ होती हैं ये रेखाएँ आड़ी (Horizontal) होती हैं इनको ही हस्त रेखा विज्ञान में विवाह रेखा के नाम से पहचाना जाता है।
ऐसा देखा जाता है कि मुख्यतः सभी के हाथों में ये रेखाएँ देखने को मिलती हैं परन्तु फिर भी कई लोग विवाह से वंचित रह जाते हैं अर्थात् अविवाहित ही जीवन निकाल देते हैं और कई लोग ऋषि-मुनि, तपस्वी या साधु-संत साध्वी आदि बन जाते हैं। जो लोग विवाह रेखाएँ होने के बाद भी कुंवारे रह जाते हैं उनके बारे में कई ज्ञाताओं का अनुभव यह कहता है कि ये रेखाएँ दो आत्माओं के मिलन स्वरुप स्नेह या प्रेम को दर्शाती हैं न कि उन दोनों का भौतिक, शारीरिक या सांसारिक मिलन को। यह प्रेम या स्नेह या आत्मिक सम्बन्ध पारिवाहिक प्रेम या प्रशंसक के रूप में भी हो सकता है।
अतः इन्हें विवाह रेखा भले ही कहा जाता है और इनको सिर्फ विवाह का आधार माना जा सकता है क्योंकि ये आत्मिक संबध को दर्शाती हैं, पर इस रेखा के आधार पर यह भविष्यवाणी करना १०० प्रतिशत उचित प्रतीत नहीं होता।
विवाह के बारे में निर्णय लेने से पहले गुरु, चन्द्र व शुक्र पर्वतों को भी देखना चाहिए या आधार मानना चाहिए। शारीरिक, भौतिक, सांसारिक, धार्मिक या भावुकता के सम्बन्ध इन्हीं पर्वतों की स्थिति से पता किये जा सकते हैं।
विवाह रेखाएँ, लग्न के सम्बन्ध में इतना निर्णय जरुर दे सकती हैं कि विवाह सुखद रहेगा या नहीं, वैचारिक मतभेद रहेंगे या नहीं, विवाह के बाद दोनों अलग हो जायेंगे या दूसरी शादी होगी या नहीं आदि।
अतः इस प्रकार दो आत्माओं के मिलन को दर्शाना ही इस रेखा का मुख्य कार्य या आधार है यह मिलन कैसा होगा यह सिर्फ इस रेखा की मदद से नहीं बताया जा सकता इसके लिए पर्वतों को भी आधार बनाया जाता है।
आइये जानते हैं कि विवाह रेखा से कैसे जान सकते हैं कि व्यक्ति का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा -
# विवाह रेखा के आभाव में – यदि व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा है ही नहीं तो उस व्यक्ति का किसी से से आत्मिक सम्बन्ध नहीं होगा और उसका अविवाहित ही रहता है और अगर विवाह हो जाता है तो ऐसा विवाह कभी सुखकारी नहीं होता और यही उनके अलग होने का कारण बनता है।
# यदि,
१. प्रभावी रेखा शुक्र पर्वत से ले कर बुद्ध या सूर्य पर्वत तक पहुंचे अथवा
२. गुरु पर्वत पर क्रॉस का निशान हो,
इनमे से किसी के भी हथेली पर उपस्थित होने पर विवाह जीवन सुखमय होता है।
# यदि इस प्रभावी में रेखा में कटाव देखने को मिलता है या प्रभावी रेखा खंडित स्थिति में शुक्र या बुध पर्वत तक जाये या भाग्य रेखा में कटाव हो तो ऐसी स्थिति में विवाह सुखमय नहीं होता अर्थात् दुःखद होता है।
# प्रभावी रेखाएँ शुक्र पर्वत से शुरू हो कर विवाह रेखा से जा कर मिलें तो पति-पत्नी का एक दूसरे से अलग रहने के हालात बनते हैं और उनके मध्य वैचारिक मतभेद देखने को मिलता है।
# कोई रेखा शुक्र पर्वत से शुरू हो कर हृदय रेखा के पास दो भागों में बट जाये या हृदय रेखा को काटती हुई दिखाई दे तो पति पत्नी के वैवाहिक जीवा कलहपूर्ण होगा और इनके अलग होने की पूरी सम्भावना होती है अर्थात विवाह-विच्छेद (तलाक) हो जाता है।
तो ये थी विवाह रेखा के संबध में हस्त रेखाविज्ञान में जरुरी बातें। मुख्यतः इस बात को अच्छे से ध्यान रखें कि विवाह रेखाएँ सिर्फ आत्मिक मिलन या प्रेम-स्नेह को दर्शाती है सिर्फ इन रेखाओं के आधार पर विवाह की स्थिति नहीं बतलाई जा सकती इसके लिए पर्वतों को भी आधार बनाना जरुरी होता है।
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