व्यक्ति के हाथ के अंगूठे का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क और रक्त धमनियों से होता है। यही वजह है कि व्यक्ति के स्वाभाव और चरित्र का अंगूठे के द्वारा अध्ययन किया जा सकता है। अंगूठे की बनावट अँगुलियों से अलग होती है और अंगूठा हस्त रेखाशास्त्र में अपना अलग स्थान रखता है।
अगर अँगुलियों की बात करें तो ये सिर्फ ऊपर और नीचे की तरफ मुड़ सकती हैं जबकि अंगूठा चारों तरफ घुमा सकते है अंगूठे का यही चारों तरफ घूमना ही हाथ की प्रवृत्ति पर विशेष प्रभाव डालता है।
सामान्य अंगूठा - तर्जनी अँगुली के तीसरे पर्व के आधे भाग तक पहुँचने वाला अंगूठा सामान्य लम्बाई का माना जाता है।
लम्बा अंगूठा – तर्जनी अँगुली के तीसरे पर्व (पोर) के आधे भाग से ऊपर तक पहुँचने वाला अंगूठा लम्बा अंगूठा कहलाता है।
छोटा अंगूठा – तर्जनी अँगुली से तीसरे पर्व के आधे भाग के नीचे तक पहुँचने वाला अंगूठा छोटा अंगूठा कहलायेगा।
लम्बे अंगूठे वाले व्यक्तियों के गुण-दोष – सामान्य लम्बाई से बड़े अंगूठे वाले व्यक्तियों का चरित्र उत्तम और इच्छा शक्ति प्रबल होती है और ये काफी प्रभावशाली होते हैं। ऐसे अंगूठे वाले लोग खुद योजना बनाते हैं और उन्ही पर कार्य करते हैं और ऐसा करने में वे किसी भी हिचक का अनुभव नहीं करते।
छोटा अंगूठा होने पर व्यक्ति के गुण-दोष – अंगूठे का छोटा होना, मस्तिष्क के विकास में कमी को दर्शाता है। ये भावुक और इनमे आत्मविश्वास की कमी होती है स्वयं सत्य होते हुए भी किसी बात पर तर्क नहीं कर पाते। इनकी इच्छाशक्ति कमजोर और फालतू में अधिक दुःखी बने रहना इनके स्वाभाव में होता है। ये मनन कम करते हैं।
अंगूठे पर पाए जाने वाले पहले दो पर्वों में से पहला पर्व सहनशीलता, इच्छाशक्ति और निडर प्रवृत्ति को दर्शाता है और दूसरा पर्व तर्कशक्ति को।
दूसरे पर्व की लम्बाई पहले से ज्यादा हो तो व्यक्ति की तर्कशक्ति की क्षमता अच्छी होती है। कोई भी बात करने या कार्य करने से पहले अच्छे से सोचता है और जब खुद संतुष्ट हो तभी वह कार्य को करता है या राय प्रकट करता है।
अंगूठे के पहले पर्व की लम्बाई दूसरे पर्व की अपेक्षा अधिक हो तो व्यक्ति में शीघ्रता से निर्णय लेने की क्षमता होती है और इनकी इच्छाशक्ति अन्य की अपेक्षा अधिक होती है।
दोनों पर्व (पहला और दूसरा) का समान लम्बाई का होना अच्छा माना जाता है और ऐसे अंगूठे को श्रेष्ट श्रेणी में गिना जाता है। ऐसे अंगूठे वाले लोगों की कार्यशक्ति और इच्छाशक्ति में संतुलन दिखता है और इनका निर्णय सर्वमान्य होता है।
अंगूठे के सिरे पर भी व्यक्ति के गुण-दोष निर्भर करते हैं जो निम्न प्रकार से पहचान सकते हैं -
# अंगूठे का पहला पोर सुन्दर दिखाई देना और भरा सा हुआ दिखना इस बात का संकेत है व्यक्ति सभी कार्यों पर निर्णय पूरे आत्मविश्वास के साथ लेता है और यह आत्मविश्वास काम के दौरान शुरू से अंत तक बना रहता है।
# प्रथम पोर का सिरा समतल होने पर व्यक्ति में अहं की भावना अधिक होती है और अगर प्रथम पोर नुकीला दिखे तो ऐसे लोगों में इच्छाशक्ति की कमी होती है और एकांत में रहना पसंद करता है।
# पहले पोर का सिरा वर्गाकार चौरस दिखे तो ऐसे लोग न्यायप्रिय, बुद्धिमान और कुशल प्रशासक होते हैं।
* दूसरा पोर पतला हो तो व्यक्ति अपनी राय प्रकट करने या अपनी बात रखने का साहस नहीं जुटा पाता। ऐसे अंगूठे वाले लोग सफलता असफलता की चिंता नहीं रखते और हमेशा अपने कार्य को ही प्राथमिकता देते हैं।
* अंगूठे का दूसरा पोर मोटा हो तो व्यक्ति निडर होता है इनमें भय नहीं होता और जल्दी आवेश में आ जाते हैं और आवेश में आ कर किसी कार्य या बात पर अपनी राय प्रकट कर देते हैं।
अंगूठे के झुकाव कैसा है इसको भी देखना जरुरी होता है इससे भी व्यक्ति के गुण दोष का पता लगाया जा सकता है। जैसे-
# अंगूठे का अन्दर की तरफ झुका होना या बतलाता है कि व्यक्ति दया-भाव नहीं रखता और ऐसे लोगों को अगर किसी गलत काम काम के लिए लालच दिया जाये तो ये वह कार्य भी करने में पीछे नहीं हटेंगे।
# अंगूठा बाहर की तरफ झुका होने पर यह पता चलता है कि व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता नहीं है और भावुक प्रवृत्ति का होता है और हमेशा कल्पनालोक में खोया रहता है।
# अंगूठा सीधा होना इस बात को दर्शाता है कि व्यक्ति अपने इरादे का पक्का है और अगर किसी कार्य को करने का मन बना लेते हैं तो उसे पूरा किये बिना चैन से नहीं बैठते। इनकी इच्छाशक्ति प्रबल होती है।
अंगूठे के पोरों और उसकी बनावट से उसमे कुछ विशेष गुण विद्धमान रहते है जो इस प्रकार हैं इसमें अंगूठे को फेलायें और देखें कि तर्जनी से अंगूठे का कितना झुकाव है।
* अंगूठे के दोनों पर्व उभरे हुए न हो अर्थात् पतले हों तो इनमे तर्कशक्ति का आभाव रहता होता है और अपनी बात करने में हिचकिचाते हैं।
* तर्जनी और अंगूठे के मध्य बनने वाला कोण ९० अंश (90 डिग्री) से ज्यादा है तो ऐसा व्यक्ति सामान्यतः स्वतंत्र विचार वाला होता है, किसी के अनुरूप कार्य नहीं करता बस अपने ही कार्य में मग्न रहता है किसी की सलाह लेना पसंद नहीं करता।
* अगर अंगूठे और तर्जनी के मध्य का कोण ९० अंश (90 डिग्री) से कम है तो अर्थात् अंगूठा तर्जनी की तरफ थोड़ा झुका हुआ हो तो व्यक्ति किसी के अधीन रह कर कार्य नहीं करता। विचारों के संतुलन में कमी होती है और इस वजह से स्वाभाव अस्थिर होता है।
* अगर अंगूठा, तर्जनी से ९० अंश का कोण बनाये तो ऐसे व्यक्ति के स्वाभाव और विचारों में संतुलन देखने को मिलता है।
* अंगूठे और तर्जनी के मध्य बनने वाला कोण ९० अंश (90 डिग्री) से बहुत ज्यादा कम हो तो व्यक्ति रूढ़िवादी प्रवृत्ति का होता है वो कभी भी पारिवारिक परम्पराओं को तोड़ने की चाहत नहीं रखता।
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