हृदय रेखा की पहचान – यह रेखा गुरु-पर्वत, शनि-पर्वत या शनि और गुरु पर्वत के मध्य से प्रारंभ होती है।
हृदय रेखा का प्रारंभ स्थल-
• गुरु पर्वत से – यह रेखा गुरु पर्वत से शुरू हो कर मस्तिष्क रेखा के समानान्तर चल कर मंगल पर्वत के क्षेत्र पर जा कर ख़त्म होती है।
• शनि पर्वत से – यह अर्ध गोलाकार रूप में कनिष्ठिका अँगुली के नीचे से हो कर मंगल पर्वत के क्षेत्र पर समाप्त होती है।
• गुरु व शनि पर्वत के मध्य से प्रारंभ - यह रेखा गुरु पर्वत व शनि पर्वत के बीच से शुरू हो कर मस्तिष्क रेखा के समानान्तर चल कर मंगल पर्वत के स्थान पर जा कर ख़त्म होती है।
दिल के रहस्य के बारे में मानसिक व क्रियान्वित दृष्टिकोण का पता हृदय रेखा के द्वारा लगाया जा सकता है। यह रेखा व्यक्ति के संवेगात्मक एवं प्रेम सम्बन्धी तथ्यों को उजागर करती है जैसे सद्भावना, साहस, कायरता, भावनाएं, सहानुभूति आदि। इस रेखा के द्वारा किसी व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति का पता लगाया जा सकता है जैसे व्यक्ति किसी प्राणी मात्र के लिए व्यवहार कैसा होगा, वह उसे वास्तव में प्रेम करता है या नहीं, वह प्रेम किये जाने योग्य है या नहीं आदि।
वैसे तो यह रेखा सामान्यतः हर व्यक्ति के हाथ में होती है परन्तु जिन व्यक्तियों के हाथ में हृदय रेखा का आभाव होता है वो व्यक्ति व्यवहार और आचरण से विलास प्रिय होता है यह रेखा गुरु पर्वत से शुरू हो कर मस्तिष्क रेखा के समानान्तर चल कर मंगल पर्वत के स्थान पर जा कर ख़त्म होती है। ऐसे व्यक्ति घमंडी होते हैं और अधिकतर हृदय की बीमारी से पीड़ित होते हैं। ये हृदय से कभी भी किसी भी तरह परोपकारी या भावुक नहीं होते। इनके अन्दर बदले की भावना होती है और नकारात्मकता इन्हें घेरे रहती है। इनसे ज्यादा समय तक दोस्ती रखना अच्छा नहीं समझा जाता।
# हृदय रेखा का गुरु पर्वत से शुरू हो कर मंगल-बुध पर्वत के बीच खत्म हो जाना यह दर्शाता है कि व्यक्ति को प्रेम के मामलों में सफलता हाथ नहीं लगती। इनके स्वाभाव में जल्दबाजी और विचारों की अस्थिरता होती है जल्दबाज होने के कारण ये वास्तविक स्थिति का पता करने के पहले ही निर्णय पर पहुँच जाते हैं और हमेशा असफल रहते हैं। ये अपनी भावुक प्रवृत्ति होने के कारण छोटी सी बात पर घंटो विचार करते रहते हैं। ऐसी रेखा वाले व्यक्ति को संयम और धीरज के साथ वस्तुस्थिति को ध्यान में रख कर किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए तभी उनको सफलता मिल पाती है, किन्तु ऐसा करना उनके वस् की बात नहीं होती।
# शनि पर्वत से शुरू हो कर मंगल-बुध पर्वत के बीच समाप्त होने वाली हृदय रेखा यह दर्शाती है कि व्यक्ति सिर्फ धन-प्राप्ति और वासना को पूरा करने के लिए सम्बन्ध रखता है। इनको सामने वाले की मजबूरी से ज्यादा अपना स्वार्थ दिखाई देता है, अपना स्वार्थ सिद्ध होते ही सम्बन्ध भी तोड़ देते हैं और दूसरे व्यक्ति की तलाश में लग जाते हैं जिनसे कोई स्वार्थ-सिद्ध हो। इनमे किसी से काम लेने की कला होती है और ये सामने वाली को आसानी से किसी भी उलझन में डाल देते हैं। शनि पर्वत दुर्बल होने पर ऐसे व्यक्ति मान-मर्यादा या आत्मसम्मान की चिंता नहीं करते यहाँ तक कि इन्हें गलत या ओछे शब्दों से भी संबोधित किया जाता है तो ये गुस्सा नहीं करते। अपने काम को कराने हेतु ये चापलूसी भी करते हैं।
# शनि पर्वत प्रबल अर्थात् उभरा हुआ हो तो व्यक्ति एकांत में रहना अवश्य पसंद करता है लेकिन इनके काल्पनिक विचारों में निराशा के बादल छाये रहेंगे। व्यक्ति का ध्यान हमेशा नकारात्मक बातों की तरफ विशेष रूप से रहता है। व्यक्ति चिड़चिड़े स्वाभाव का और राग-रंग से दूर रहेगा। इनमे सहनशक्ति की कमी होती है और हर क्षेत्र और वातावरण में भयभीत महसूस करते हैं वह मित्रों से भी दूरी बना लेता है उनसे मिलना जुलना छोड़ देता है और अकेले रहना पसंद करता है।
# शनि अथवा गुरु पर्वत के बीच से प्रारंभ हो कर बुध अथवा मंगल पर्वत के मध्य समाप्त होने वाली हृदय रेखा इस बात का प्रतीक होती है कि व्यक्ति वास्तव में विश्वास के लायक, समझदार और सोच समझ कर काम करने वाला है। वह हर परिस्थिति में अपने राज को राज ही रखता है। प्रेमी बनने के काबिल होता है और दिखावटीपन पसंद नहीं करता। वह जिससे प्रेम करता है उसको कभी जग जाहिर नहीं होने देता अर्थात अपने प्रेमी को दुनिया से छुपाये रखना पसंद करता है और उसका प्रेम आदर्श होता है। वह जिसके साथ सम्बन्ध जोड़ लेता है उसके लिए सब कुछ त्याग कर सकता है। सामाजिक दृष्टिकोण से प्रतिष्ठित होता है। स्वयं के विचारों का धनी, मिलनसार, हँसमुख प्रकृति, साहसी और भावुक प्रवृत्ति वाले होते हैं इन्हें दूसरों को दुःख देना नहीं आता खुद दुःखी रह लेते हैं। ये विलासप्रिय नहीं होते केवल प्रेम के भूखे होते हैं। सही अर्थों में इन्हें ही सच्चा प्रेमी कहा जाता है। ये सामाजिक दृष्टिकोण और मान-प्रतिष्ठा का हमेशा विशेष रूप से ध्यान रखते हैं। इनका निर्णय अटल होता है।
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