गौण रेखाएँ बहुत कम लोगों की हथेलियों में देखने को मिलती हैं किसी व्यक्ति की हथेली में जरुरी नहीं कि ये रेखाएँ हों। गौण रेखाओं का व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव पड़ता है और
इन रेखाएँ मुख्यतः 8 प्रकार की होती हैं जो निम्न हैं –
१. गुरु मुद्रिका
२. शनि मुद्रिका
३. शुक्र मेखला
४. रहस्यमय क्रॉस
५. अतीन्द्रिय ज्ञान-रेखा
६. चन्द्र-शुक्र रेखा
७. मंगल रेखा
८. प्रभाव रेखाएँ
१. गुरु मुद्रिका – कोई रेखा अगर गुरु पर्वत व तर्जनी के मध्य भाग में अर्ध चन्द्रकार रूप में हो तो use गुरु मुद्रिका कहा जाता है। ऐसी रेखा होना व्यक्ति की बुद्धिमत्ता को दर्शाता है और इन लोगों में धार्मिक प्रवृत्ति अधिक होती है। ऐसे व्यक्ति अनुसन्धान और गुप्त विद्याओं में विशेष रुचिकर होते हैं। और सभी कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।
२. शनि मुद्रिका – अगर कोई रेखा शनि पर्वत और मध्यमा अँगुली के बीच में गोलाकार रूप में होती है तो इसे शनि मुद्रिका नाम से जानते हैं। यह शनि पर्वत को कट करती है इस वजह से इसका फल अच्छा नहीं होता अर्थात अशुभ होता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में असफल ही रहते हैं इनका मन हमेशा भटकता रहता है और इनके काल्पनिक विचारों में हमेशा किसी के प्रति बदले की भावना घर कर लेती है। ये कोई भी निर्णय दृढ़ निश्चय हो कर नहीं कर सकते और हमेशा अपनी किस्मत या भाग्य को दोष देते रहते हैं।
३. शुक्र मेखला या शुक्र वलय (गर्डल ऑफ़ वेनिस) – यदि कोई रेखा अनामिका और कनिष्ठिका के मध्य से शुरू हो कर गोलाकार रूप में मध्यमा व तर्जनी अँगुलियों के बीच में ख़त्म होती है तो यह शुक्र मेखला कहते हैं। इसको ‘शुक्र वलय’ और अंग्रेजी में ‘गर्डल ऑफ़ वेनिस’ नाम से भी जाना जाता है। यह रेखा कल्पनालोक में खोये रहने वाले व्यक्तियों के हाथ में देखने को मिलती है। यदि शुक्र मेखला रेखा स्पष्ट और सुन्दर हो व्यक्ति अधिक संवेदनशील होता है और यदि यह रेखा सुन्दर और स्पष्ट न हो और साथ ही ग्रह क्षेत्र दुर्बल हों तो व्यक्ति में काम-पिपासा अधिक होती है। उसे शांत करने हेतु व्यक्ति किसी भी तरह का साहस उठा सकता है। यदि शुक्र मेखला रेखा खंडित दिखे तो समझ लीजिये कि व्यक्ति जल्दबाज, अधीरता और काम-बासना से भरा होता है।
४. रहस्यमय क्रॉस – मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा के मध्य बने क्रॉस को ‘रहस्यमय क्रॉस’ कहते हैं। यह क्रॉस चतुष्कोण या गुणाकार-निशान के रूप में देखा जा सकता है। ऐसा निशान किसी व्यक्ति के हाथ की हथेली पर होने पर व्यक्ति गुप्त विद्याओं में और धार्मिक विद्यायों में विशेष रूचि लेते हैं और इनका काम आकस्मिक (Casual) ढंग से ही होता है।
५. अतीन्द्रिय ज्ञान-रेखा – अतिन्द्रिय रेखा बुध क्षेत्र से प्रारम्भ हो चन्द्र क्षेत्र तक अर्धवृत्ताकार रूप में पाई जाती है। ऐसी रेखा हथेली पर होने पर व्यक्ति का स्वाभाव सुक्ष्मग्राही और संवेदनशील होता है। वह अन्य लोगों की बात को जानने वाला होता है और ऐसे व्यक्तियों को भावी घटनाओं की पहले से ही जानकारी हो जाती है।
६. चन्द्र-शुक्र रेखा – चन्द्र पर्वत से शरू होकर धनुषाकार रूप में शुक्र पर्वत में मिलने वाली रेखा चन्द्र-शुक्र रेखा होती है। यह तीन रेखाओं जीवन-रेखा, सूर्य-रेखा व भाग्य-रेखा को कट करती हुए निकलती है। ये लोग मद्यपान अधिक करते हैं। इनके काल्पनिक विचारों में काम-वासना की भावना अधिक देखने को मिलती है। अति काम वासना की प्रवृत्ति के कारण उनका ख़राब रहता है।
७. मंगल रेखा – इसे जीवन रेखा की सहायक रेखा भी कहते हैं मंगल पर्वत से शुक्र पर्वत तक जीवन-रेखा के सामानांतर जाने वाली रेखा मंगल रेखा कहलाती है। यदि यह रेखा सुन्दर और स्पष्ट हो तो जीवन-रेखा की वजह से जो दोष उत्पन होते है उनको कम कर देती है ऐसा व्यक्ति जीवन भर स्वस्थ रहता है और उसको जीवन में हर क्षेत्र में विशेष व्यक्तियों का पूर्ण रूप से सहयोग की प्राप्ति होती है। यदि मंगल रेखा टूटी-फूटी होती है तो व्यक्ति की रोग प्रतिकारक क्षमता कम हो जाती है।
८. प्रभाव रेखाएँ – हथेली पर पाई जाने वाली अनेक आड़ी-तिरछी रेखाओं को प्रभावी रेखाएँ कहा जाता है। ये मन-मस्तिष्क की क्रियाशीलता की अधिकता को दर्शाती हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि ये रेखाएँ जिस पर्वत पर पाई जाती हैं उस पर्वत के गुणों की अधिक क्रियाशीलता को दर्शाती हैं।
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