परिचय:
भगवान गणेश जी हिन्दू धर्म के सबसे प्रमुख देवताओं में से एक हैं। उन्हें "विघ्नहर्ता" और "सिद्धिदाता" के रूप में जाना जाता है, जो हर शुभ कार्य की शुरुआत में पूजे जाते हैं। उनकी विशेषता है उनका हाथी जैसा मुख और चार भुजाएँ, जो प्रतीकात्मक रूप से अनंत शक्ति और बुद्धिमत्ता का प्रतीक हैं। इस पृष्ठ में, हम भगवान गणेश जी से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे, जिसमें उनका परिचय, निहितार्थ, पूजा विधि, इतिहास और धार्मिक महत्व शामिल है।
गणेश पूजा के लिए सामग्री
गणेश पूजा के लिए आवश्यक सामग्री (समाग्री) का विवरण नीचे दिया गया है। इस सामग्री के माध्यम से आप विधिपूर्वक भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं:
गणेश पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:
- गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर: भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर पूजन के लिए आवश्यक है।
- आसन: पूजा के लिए एक स्वच्छ लाल या पीले रंग का कपड़ा, जिस पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की जाएगी।
- कलश: जल भरने के लिए एक तांबे या पीतल का कलश, जिसमें आम के पत्ते और नारियल रखा जाता है।
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बना पंचामृत भगवान गणेश के अभिषेक के लिए।
- जल: गणेश जी के अभिषेक और पूजन के लिए शुद्ध जल।
- सिंदूर और कुमकुम: भगवान गणेश को तिलक लगाने के लिए।
- चंदन: तिलक और पूजा के लिए चंदन पाउडर या पेस्ट।
- अक्षत (चावल): बिना टूटे हुए चावल, जो गणेश जी को अर्पित किए जाते हैं।
- पुष्प (फूल): गणेश जी को अर्पित करने के लिए लाल या सफेद फूल, विशेषकर लाल गुड़हल के फूल।
- दूर्वा (दूब घास): गणेश जी को अर्पित करने के लिए 21 दूर्वा।
- धूप और अगरबत्ती: धूप और अगरबत्ती पूजा में सुगंध के लिए।
- दीपक: पूजा में आरती के लिए तिल के तेल या घी का दीपक।
- मोदक या लड्डू: भगवान गणेश को प्रिय भोग, जिसे प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है।
- नैवेद्य: पूजा के लिए फल, मिठाई, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, और अन्य नैवेद्य।
- पान के पत्ते: पान के पत्ते, जिनपर चूना, कत्था और सुपारी रखकर अर्पित किया जाता है।
- कपूर: आरती के लिए।
- हवन सामग्री: यदि हवन भी करना हो तो हवन के लिए आम की लकड़ी, घी, जौ, तिल, और अन्य हवन सामग्री।
- गंगाजल: पवित्र जल, जो पूजा स्थल और मूर्ति की शुद्धि के लिए उपयोग किया जाता है।
- रक्षा सूत्र (मौली): भगवान गणेश को अर्पित करने के लिए और पूजा के बाद बांधने के लिए।
- घंटी: पूजा के समय बजाने के लिए।
- पंच फल: पांच प्रकार के फल, जो भगवान गणेश को अर्पित किए जाते हैं।
- पंच मेवा: पांच प्रकार के सूखे मेवे, जो पूजा के दौरान अर्पित किए जाते हैं।
- सुपारी और कलावा: पूजा में उपयोग होने वाले अन्य आवश्यक समाग्री।
- साबुत हल्दी: पूजा में उपयोग करने के लिए।
- हवन कुंड: यदि हवन किया जा रहा हो तो।
इस सामग्री के साथ, आप भगवान गणेश की पूजा को विधिपूर्वक और शुद्ध हृदय से संपन्न कर सकते हैं। गणेश जी की कृपा से आपके जीवन में सुख, समृद्धि और विघ्नों का नाश हो।
गणेश जी को लगने वाला प्रसाद या भोग
गणेश जी का भोग विशेष रूप से गणेश चतुर्थी और अन्य गणेश पूजा के अवसरों पर अर्पित किया जाता है। गणेश जी को अर्पित भोग स्वादिष्ट, ताजे, और शुद्ध खाद्य पदार्थ होते हैं। यहाँ गणेश जी को अर्पित करने के लिए कुछ प्रमुख भोग पदार्थों की सूची दी गई है:
गणेश जी का भोग या प्रसाद:
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लड्डू:
- उपयोग: गणेश जी को लड्डू विशेष रूप से अर्पित किए जाते हैं, खासकर बेसन के लड्डू।
- विधि: घर के बने ताजे और शुद्ध लड्डू का उपयोग करें।
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मोदक:
- उपयोग: मोदक गणेश जी का प्रिय भोग माना जाता है। यह मिठाई विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर तैयार की जाती है।
- विधि: चांवल का आटा, नारियल, और गुड़ से बने मोदक विशेष रूप से पूजा के लिए बनाए जाते हैं।
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पेड़ा:
- उपयोग: मिठे पेड़े भी गणेश जी को अर्पित किए जा सकते हैं।
- विधि: घर के बने पेड़े या ताजे पेड़े का उपयोग करें।
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खीर:
- उपयोग: दूध और चावल से बनी खीर भी गणेश जी को भोग के रूप में अर्पित की जाती है।
- विधि: घर पर बनी ताजे खीर का उपयोग करें।
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नारियल:
- उपयोग: नारियल को गणेश जी को अर्पित किया जाता है। इसे पूजा के दौरान तोड़ा जाता है।
- विधि: नारियल को तोड़कर भोग के रूप में अर्पित करें।
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फल:
- उपयोग: ताजे फल, जैसे केला, सेब, अंगूर, या संतरा, गणेश जी को भोग के रूप में अर्पित किए जाते हैं।
- विधि: ताजे और शुद्ध फल का चयन करें और उन्हें पूजा के समय अर्पित करें।
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रवा (सूजी) का हलवा:
- उपयोग: सूजी का हलवा भी गणेश जी को अर्पित किया जाता है।
- विधि: घर पर बने हलवे का उपयोग करें।
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चिउड़े (पपड़ी):
- उपयोग: साधारण चिउड़े भी गणेश जी को भोग के रूप में अर्पित किए जा सकते हैं।
- विधि: ताजे चिउड़े का उपयोग करें और शुद्धता के साथ अर्पित करें।
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गुड़ और मूँग दाल:
- उपयोग: गुड़ और मूँग दाल का भोग भी गणेश जी को अर्पित किया जाता है।
- विधि: गुड़ और मूँग दाल को पूजा के समय अर्पित करें।
भोग अर्पित करने की विधि:
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भोग की तैयारी: भोग को साफ और ताजे रूप में तैयार करें। ध्यान दें कि भोग पवित्र और शुद्ध हो।
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भोग अर्पण: पूजा के दौरान गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने भोग अर्पित करें।
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प्रार्थना: भोग अर्पित करते समय, गणेश जी से प्रार्थना करें कि वे आपकी भक्ति और पूजा को स्वीकार करें और आशीर्वाद दें।
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भोग वितरण: भोग अर्पित करने के बाद, भक्तों में उसे बाँट दें। यह भोग प्रसाद के रूप में स्वीकार किया जाता है और इसे श्रद्धा के साथ ग्रहण करें।
गणेश जी के भोग को अर्पित करने से भक्तों को आशीर्वाद, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है। यह पूजा और भक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
गणेश जी की पूजा विधि
गणेश पूजन हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो भगवान गणेश की आराधना के लिए किया जाता है। यह पूजा विशेष रूप से किसी भी नए कार्य को शुरू करने से पहले की जाती है, ताकि सभी बाधाएँ दूर हों और कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो। यहाँ गणेश पूजा विधि के साथ मंत्रों का विवरण दिया गया है:
गणेश पूजा विधि:
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स्नान और शुद्धिकरण:
- सबसे पहले, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को भी शुद्ध करें।
- पूजा स्थल पर स्वस्तिक बनाकर फूल और चावल चढ़ाएं।
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आसन स्थापन:
- भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर को आसन पर स्थापित करें।
- आसन के लिए एक स्वच्छ लाल कपड़े का प्रयोग करें।
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आवाहन (भगवान गणेश का आवाहन):
- भगवान गणेश का आवाहन करने के लिए निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ श्री गणेशाय नमः।
- गणेश जी को आसन पर विराजमान करें और उन्हें जल अर्पित करें।
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पंचोपचार पूजा:
- जल: भगवान गणेश को जल अर्पित करें।
- चंदन: चंदन का तिलक लगाएं।
- अक्षत: अक्षत (चावल) अर्पित करें।
- पुष्प: लाल फूल अर्पित करें।
- धूप-दीप: धूप और दीप जलाकर आरती करें।
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गणेश मंत्र:
- पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें:
ॐ गं गणपतये नमः।
- इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
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दुर्वा अर्पण:
- गणेश जी को 21 दूर्वा (दूब) अर्पित करें, क्योंकि दूर्वा भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है।
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मोदक और लड्डू का भोग:
- भगवान गणेश को मोदक और लड्डू का भोग अर्पित करें। यह उनका प्रिय भोग है।
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आरती:
- गणेश जी की आरती करें। आरती के लिए निम्नलिखित आरती का पाठ करें:
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥.......
-
प्रसाद वितरण:
- पूजा के बाद गणेश जी के भोग का प्रसाद सभी को वितरित करें।
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विसर्जन:
- पूजा के अंत में गणेश जी का विसर्जन करें। विसर्जन के समय यह मंत्र बोलें:
गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ।
पूजन के बाद ध्यान रखें:
- पूजा के बाद गणेश जी की मूर्ति को सम्मानपूर्वक किसी पवित्र जलाशय में विसर्जित करें।
- यदि घर में स्थाई मूर्ति है, तो उसे वहीं पुनः स्थापित करें और प्रतिदिन पूजन करें।
इस विधि से भगवान गणेश की पूजा करने पर वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि, और विघ्नों का नाश करते हैं।
गणेश जी की पूजा का महत्व
भगवान गणेश जी की पूजा का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है। उन्हें "विघ्नहर्ता" कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे जीवन की सभी बाधाओं को दूर करते हैं। हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की पूजा से की जाती है, चाहे वह विवाह हो, नया घर हो, व्यवसाय की शुरुआत हो, या कोई अन्य महत्वपूर्ण कार्य। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी की कृपा से कार्य बिना किसी विघ्न के संपन्न होते हैं।
गणेश जी बुद्धि और विवेक के देवता माने जाते हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति को सही निर्णय लेने और जीवन में सफलता प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। वे समृद्धि, ज्ञान, और सौभाग्य के प्रतीक हैं। उनकी पूजा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होती है।
गणेश चतुर्थी, जो कि गणेश जी का सबसे प्रमुख त्यौहार है, इस पूजा के महत्व को और भी बढ़ा देता है। इस दिन लोग भगवान गणेश जी की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं और नौ दिनों तक उनकी पूजा करते हैं, जो कि सामूहिक सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
इस प्रकार, गणेश जी की पूजा न केवल व्यक्तिगत उन्नति के लिए, बल्कि समाज और परिवार की समृद्धि के लिए भी अत्यंत आवश्यक मानी जाती है।
गणेश मंत्र:
भगवान गणेश जी के विभिन्न मंत्र हैं जो उनकी पूजा में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख गणेश मंत्र दिए जा रहे हैं:
1. गणेश जी का मूल मंत्र:
ॐ गं गणपतये नमः।
- इस मंत्र का जाप करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और सभी कार्य बिना बाधा के संपन्न होते हैं।
2. गणेश गायत्री मंत्र:
ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
- यह मंत्र गणेश जी की बुद्धि, विवेक और ज्ञान की प्राप्ति के लिए जपा जाता है।
3. गणेश बीज मंत्र:
ॐ गं गणपतये नमः।
- यह मंत्र गणेश जी के बीज मंत्र के रूप में जाना जाता है और यह शक्ति और सफलता के लिए जपा जाता है।
4. गणेश अथर्वशीर्ष:
ॐ नमस्ते गणपतये
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि
त्वमेव केवलं कर्तासि
त्वमेव केवलं धर्तासि
त्वमेव केवलं हर्तासि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्।
- गणेश अथर्वशीर्ष उपनिषद से लिया गया यह मंत्र भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है और उसे जपने से व्यक्ति को पूर्ण सुख और शांति प्राप्त होती है।
5. गणेश पंचाक्षर मंत्र:
ॐ वक्रतुण्डाय हुम्।
- यह मंत्र गणेश जी के वक्रतुण्ड (टेढ़ी सूंड) रूप का आह्वान करता है, जो सभी बाधाओं को दूर करने वाला है।
6. गणेश द्वादश नाम स्तोत्र:
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्।
- यह 12 नाम स्तोत्र गणेश जी के 12 नामों का स्मरण कराता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को आयु, कामना, और सिद्धि की प्राप्ति होती है।
7. गणेश चालीसा:
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
एकदन्त, दयावन्त, चार भुजा धारी।
मातु तुज गजवदन, श्रीगणपति मूरति प्यारी।
सर्व विघ्न हरता, सब सुख करता।
गुण सागर गणपति, आशीष दीजै।
- गणेश चालीसा भगवान गणेश जी की महिमा का गुणगान करता है। इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी विघ्न-बाधाएँ दूर होती हैं।
8. गणेश मंत्र (संकट नाशन गणेश स्तोत्र):
ॐ श्री गणेशाय नमः।
ॐ गणाधिपाय नमः।
ॐ विघ्ननाशाय नमः।
ॐ विनायकाय नमः।
ॐ ईश्वराय नमः।
- यह मंत्र संकट और बाधाओं को दूर करने के लिए अत्यधिक प्रभावी माना जाता है। इसे संकट नाशन गणेश स्तोत्र भी कहा जाता है।
9. ऋद्धि-सिद्धि मंत्र:
ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये
वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
- यह मंत्र गणेश जी से समृद्धि, सफलता और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जपा जाता है। विशेष रूप से यह मंत्र उन लोगों के लिए है जो ऋद्धि और सिद्धि की प्राप्ति की कामना रखते हैं।
10. गणेश यज्ञ मंत्र:
ॐ वक्रतुण्डाय हुं।
- यह यज्ञ में उच्चारित किया जाने वाला मंत्र है जो गणेश जी को आह्वान करता है। यह मंत्र व्यक्ति को समृद्धि और सफलता की प्राप्ति के लिए है।
11. गणपति प्रार्थना मंत्र:
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।
- यह मंत्र भगवान गणेश जी की प्रसन्न मुद्रा का ध्यान करते हुए, सभी विघ्नों को शांत करने के लिए जपा जाता है। इसे किसी भी पूजा या अनुष्ठान से पहले उच्चारित करना शुभ माना जाता है।
12. गणेश अष्टोत्तर शतनामावली:
ॐ सुमुखाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ कपिलाय नमः
ॐ गजकर्णकाय नमः
ॐ लम्बोदराय नमः
ॐ विकटाय नमः
ॐ विघ्ननाशाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ धूम्रवर्णाय नमः
ॐ भालचन्द्राय नमः
... (108 नामों की पूरी सूची है)
- यह अष्टोत्तर शतनामावली भगवान गणेश जी के 108 नामों का संग्रह है। इसे जपने से व्यक्ति को भगवान गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
13. गणेश कवच:
ॐ कार्तिकेय सन्नुताय गणेशाय नमो नमः।
विभुद्धि बुद्धि रूपाय सिद्धिप्रत्यर्थमेव च।
गजाननाय सर्वेशाय गणनाथाय वै नमः।
अस्य श्री गणेश कवचस्य, शंकर ऋषिः, त्रिष्टुप छन्दः, श्री गणेशो देवता।
- गणेश कवच भगवान गणेश जी की सुरक्षा और आशीर्वाद के लिए जपा जाता है। यह कवच व्यक्ति को हर प्रकार के अनिष्ट और बाधाओं से बचाता है।
14. गणेश मूल मंत्र (ॐ गण गणपतये नमः):
ॐ गण गणपतये नमः।
- यह गणेश जी का मूल मंत्र है और इसे किसी भी गणेश पूजा के दौरान जपना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह मंत्र व्यक्ति को भगवान गणेश जी की कृपा और शक्ति प्राप्त करने में सहायक होता है।
15. गणेश षडाक्षर मंत्र:
ॐ गं ह्रीं क्लीं ग्लौं गंगणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
- यह षडाक्षर मंत्र (छह अक्षरों का मंत्र) भगवान गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। यह मंत्र व्यक्ति को वांछित फल प्राप्त करने और सफलता दिलाने में सहायक होता है।
16. गणेश पंचाक्षर मंत्र (ॐ गं गणपतये नमः):
ॐ गं गणपतये नमः।
- इस पंचाक्षर मंत्र को अत्यधिक प्रभावी माना जाता है। इसे जपने से भगवान गणेश जी की शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के विघ्नों का नाश करता है।
17. गणेश अष्टकम्:
नमो नमः श्री गणेशाय तुभ्यम्
नमो नमः श्री गणेशाय तुभ्यम्।
नमो नमः श्री गणेशाय तुभ्यम्
नमो नमः श्री गणेशाय तुभ्यम्।
प्रणम्यं शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये।
- गणेश अष्टकम् भगवान गणेश जी की आठ श्लोकों वाली प्रार्थना है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को भगवान गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और आयु, कामना, और सिद्धि की प्राप्ति होती है।
18. गणेश ध्यान मंत्र:
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।
- यह ध्यान मंत्र भगवान गणेश जी की महिमा और शक्ति का स्मरण कराता है। इस मंत्र का जाप किसी भी कार्य की शुरुआत में किया जाता है, ताकि वह कार्य निर्विघ्न संपन्न हो सके।
19. गणेश सिद्धि मंत्र:
ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये।
वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
- यह सिद्धि मंत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो गणेश जी से सौभाग्य और सफलता की कामना करते हैं। यह मंत्र व्यक्ति को भगवान गणेश जी की कृपा से वांछित फल प्राप्त करने में सहायता करता है।
20. गणेश सहस्त्रनाम:
ॐ विनायकाय नमः
ॐ विकटनाय नमः
ॐ गजवक्त्राय नमः
ॐ गजाननाय नमः
... (1000 नामों की पूरी सूची है)
- गणेश सहस्त्रनाम भगवान गणेश जी के 1000 नामों का संग्रह है। यह स्तोत्र अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है, और इसे जपने से व्यक्ति को भगवान गणेश जी की अपार कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
इन मंत्रों और स्तोत्रों का नियमित रूप से जप और पाठ करने से भगवान गणेश जी की विशेष कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यह सभी मंत्र व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने, सफलता प्राप्त करने, और जीवन में समृद्धि और शांति लाने में सहायक होते हैं।
गणेश आरती:
भगवान गणेश जी की आरती अत्यंत लोकप्रिय है और हर गणेश पूजा के अंत में इसका गायन किया जाता है। यहाँ "जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा" आरती दी जा रही है:
गणेश जी की आरती:
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदन्त, दयावन्त, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
हार चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
दीनन की लाज रखो, शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो, जाओ बलिहारी।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
इस आरती के माध्यम से भक्त भगवान गणेश जी की महिमा का गुणगान करते हैं और उनसे आशीर्वाद की कामना करते हैं। यह आरती घर, मंदिर, और विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के समय गाई जाती है।
गणेश चालीसा:
गणेश चालीसा भगवान गणेश जी की पूजा में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसमें 40 छंद होते हैं, जो भगवान गणेश जी की महिमा, गुण और शक्तियों का वर्णन करते हैं। यह चालीसा भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए जपा जाता है।
गणेश चालीसा:
॥दोहा॥
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
॥चौपाई॥
जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनी गणेश, कही शिव हिय हर्षे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥
॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥
श्री गणेश मंत्र -
"श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा,
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥"
इस चालीसा के पाठ से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है, और यह भक्तों को सुख, समृद्धि, और मानसिक शांति प्रदान करता है। गणेश चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और सभी विघ्न दूर होते हैं।
गणेश जी के व्रत:
भगवान गणेश जी के व्रत (उपवास) विशेष धार्मिक महत्व रखते हैं और उनकी पूजा विभिन्न व्रतों और पर्वों के माध्यम से की जाती है। यहाँ गणेश जी के प्रमुख व्रतों की सूची दी जा रही है:
गणेश जी के प्रमुख व्रत:
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गणेश चतुर्थी:
- विवरण: यह व्रत गणेश जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इसे भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाते हैं। इस दिन भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की जाती है और नौ दिनों तक पूजा की जाती है, अंत में अनंत चतुर्दशी को मूर्ति विसर्जित की जाती है।
- महत्व: यह व्रत समृद्धि, सुख, और विघ्नों के नाश के लिए किया जाता है।
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लम्बोदर चतुर्थी (विवाह चतुर्थी):
- विवरण: यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इसे विशेष रूप से लम्बोदर गणेश की पूजा के लिए जाना जाता है।
- महत्व: यह व्रत वैवाहिक जीवन की सुख-शांति और समृद्धि के लिए किया जाता है।
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संकट चतुर्थी:
- विवरण: यह व्रत हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से गणेश जी की पूजा की जाती है और उपवास रखा जाता है।
- महत्व: यह व्रत संकटों और समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है।
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अनंत चतुर्दशी:
- विवरण: गणेश चतुर्थी के दसवें दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।
- महत्व: इस दिन गणेश जी की पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन के माध्यम से पापों और बाधाओं को दूर करने की मान्यता है।
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गणेश जयंती:
- विवरण: गणेश जयंती गणेश चतुर्थी के दिन मनाई जाती है, लेकिन इसे विशेष रूप से गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
- महत्व: यह व्रत गणेश जी के जन्म के अवसर पर विशेष पूजा और व्रत करने के लिए होता है।
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गणेश नवमी:
- विवरण: गणेश नवमी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को किया जाता है।
- महत्व: इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा और उपवास के माध्यम से उनकी कृपा प्राप्त की जाती है।
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गणेश मासिक व्रत:
- विवरण: हर माह की चतुर्थी को गणेश जी का मासिक व्रत किया जाता है। इसे संकष्ट चतुर्थी भी कहा जाता है।
- महत्व: यह व्रत नियमित रूप से भगवान गणेश की पूजा करके सभी विघ्नों और संकटों से बचाव की कामना के लिए किया जाता है।
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गणेश प्रदोष:
- विवरण: प्रदोष व्रत, जो त्रयोदशी (13वीं तिथि) को किया जाता है, पर विशेष रूप से गणेश जी की पूजा की जाती है।
- महत्व: इस दिन गणेश जी की पूजा से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
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गणेश व्रत (विशेष पूजा):
- विवरण: कुछ भक्त विशेष अवसरों और व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति के लिए गणेश व्रत करते हैं। यह व्रत व्यक्तिगत शुभकामनाओं और विशेष प्रार्थनाओं के लिए होता है।
- महत्व: इस व्रत के माध्यम से विशेष इच्छाओं की पूर्ति और गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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गणेश भाद्रपद व्रत:
- विवरण: यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से जुड़ा होता है। विशेष रूप से भाद्रपद मास की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की जाती है।
- महत्व: यह व्रत विशेष रूप से गणेश जी की कृपा प्राप्त करने और विघ्नों को दूर करने के लिए किया जाता है।
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गणेश उपवासी (उपवास):
- विवरण: गणेश उपवासी व्रत विशेष रूप से संकष्ट चतुर्थी, लम्बोदर चतुर्थी, और अन्य गणेश व्रतों पर किया जाता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और गणेश जी की पूजा करते हैं।
- महत्व: उपवासी व्रत से भक्त गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त करते हैं और उनके जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
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गणेश चतुर्थी व्रत (गणेश चतुर्थी के विशेष दिन):
- विवरण: गणेश चतुर्थी के विशेष दिन पर भक्त गणेश जी की पूजा और उपवास करते हैं। यह व्रत गणेश जी के जन्म के दिन मनाया जाता है।
- महत्व: यह व्रत विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा और आराधना के लिए किया जाता है, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
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गणेश व्रत (स्वतंत्र व्रत):
- विवरण: यह व्रत किसी भी खास अवसर पर व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। भक्त गणेश जी के विशेष पूजन के माध्यम से अपनी इच्छाओं की पूर्ति की कामना करते हैं।
- महत्व: इस व्रत से विशेष इच्छाओं की पूर्ति और गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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गणेश त्रयोदशी व्रत:
- विवरण: त्रयोदशी (13वीं तिथि) पर गणेश जी की पूजा की जाती है। यह व्रत गणेश जी के विशेष पूजन के लिए होता है।
- महत्व: इस व्रत से विशेष रूप से मानसिक शांति और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
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गणेश व्रत (सप्ताहिक व्रत):
- विवरण: कुछ भक्त हर सप्ताह विशेष दिन पर गणेश जी का व्रत रखते हैं। इस दिन विशेष पूजा और उपवास किया जाता है।
- महत्व: सप्ताहिक व्रत से भगवान गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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गणेश प्रतिपदा:
- विवरण: प्रतिपदा (प्रथम तिथि) पर भी गणेश जी की पूजा की जाती है। इसे गणेश प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है।
- महत्व: इस दिन गणेश जी की पूजा से विघ्न और बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है।
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गणेश व्रत (सप्तमी):
- विवरण: गणेश सप्तमी व्रत सप्तमी (सप्तम तिथि) पर किया जाता है। इस दिन विशेष पूजा और व्रत रखा जाता है।
- महत्व: इस व्रत से गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है।
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गणेश योगिनी व्रत:
- विवरण: यह व्रत गणेश जी की पूजा के साथ-साथ योगिनी (महिला) के सम्मान में भी किया जाता है। इसे विशेष पूजा और व्रत के रूप में मनाया जाता है।
- महत्व: इस व्रत से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होते हैं और जीवन में खुशहाली आती है।
इन व्रतों के माध्यम से भक्त भगवान गणेश जी की विशेष पूजा करते हैं और जीवन में आने वाली बाधाओं और विघ्नों से छुटकारा पाने की कामना करते हैं। गणेश जी की पूजा और व्रत करने से समृद्धि, सुख, और शांति प्राप्त होती है।
गणेश जी व्रत के नियम
गणेश जी के व्रत के नियम का पालन करने से व्रति की भक्ति और व्रत की प्रभावशीलता बढ़ती है। गणेश जी के व्रत, जैसे गणेश चतुर्थी या अन्य गणेश व्रत, के दौरान निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाता है:
1. स्नान और शुद्धता
- स्नान: व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- शुद्धता: शरीर और मन को शुद्ध बनाए रखें।
2. उपवासी रहना
- उपवास: व्रत के दौरान उपवासी रहना आम होता है। विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के दिन व्रति फल-फूल, दूध, और पानी का सेवन करते हैं।
- स्वास्थ्य: उपवास की स्थिति में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
3. गणेश जी की पूजा और अर्चना
- मंदिर दर्शन: गणेश जी के मंदिर जाकर पूजा और अर्चना करें। यदि मंदिर जाना संभव न हो, तो घर पर विशेष पूजा करें।
- आरती और भजन: गणेश जी की आरती और भजन-कीर्तन करें। गणेश अर्चना और गणेश चालीसा का पाठ भी करें।
4. पुण्य कार्य और दान
- दान: व्रत के दिन गरीबों और ब्राह्मणों को दान दें। दान में विशेष रूप से मोदक, मिठाई, और अनाज का वितरण करें।
- पुण्य कार्य: व्रत के दिन पुण्य कार्य करें, जैसे कि पवित्र स्थानों पर जाना और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना।
5. प्रस्तावना और ध्यान
- प्रस्तावना: व्रत की शुरुआत में एक पवित्र स्थान पर जाकर गणेश जी के प्रति प्रस्तावना करें।
- ध्यान: पूजा के दौरान ध्यान केंद्रित रखें और गणेश जी की आराधना में लीन रहें।
6. सामग्री और प्रसाद
- पूजा सामग्री: गणेश जी की पूजा के लिए फूल, फल, मोदक, मिठाई, और अक्षत (चिउड़े) आदि सामग्री का प्रयोग करें।
- प्रसाद: पूजा के बाद गणेश जी को अर्पित किए गए प्रसाद का वितरण करें और उसका सेवन करें।
7. विशेष पूजा और व्रत का समय
- समय: व्रत के दिन सुबह और शाम गणेश जी की पूजा करें। गणेश चतुर्थी के दिन विशेष रूप से संपूर्ण दिन पूजा-अर्चना करें।
- पुण्यकाल: पूजा का समय और व्रत का पालन सही समय पर करें।
8. उपवासी रहना और संयम
- संयम: व्रत के दौरान संयम रखें और किसी प्रकार की नकारात्मक सोच या क्रोध से बचें।
- आहार: विशेष आहार में केवल फल, दूध, और साबूदाना जैसे हल्के खाद्य पदार्थ शामिल करें।
इन नियमों का पालन करके गणेश जी के व्रत को सही तरीके से किया जा सकता है और गणेश जी की विशेष कृपा और आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
गणेश व्रत के महत्त्व
गणेश व्रत के महत्त्व विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है। गणेश व्रत, जैसे गणेश चतुर्थी, विघ्नहर्ता की पूजा, और अन्य विशेष अवसरों पर किए जाने वाले व्रत, व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाने में सहायक होते हैं। यहाँ गणेश व्रत के महत्त्व को समझाने के लिए कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:
1. विघ्नों का नाश
- संकट निवारण: गणेश जी को विघ्नहर्ता और बाधाओं का नाशक माना जाता है। गणेश व्रत के दौरान उनकी पूजा करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ और समस्याएँ दूर होती हैं।
2. सफलता और समृद्धि की प्राप्ति
- सफलता: गणेश व्रत करने से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और व्यवसाय या शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति होती है।
- समृद्धि: व्रत के माध्यम से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश जी की पूजा से आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है।
3. आध्यात्मिक उन्नति
- आध्यात्मिक वृद्धि: गणेश व्रत से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है और आत्मज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
- ध्यान और साधना: व्रत के दौरान ध्यान और साधना के लिए समय मिलता है, जिससे मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
4. स्वास्थ्य और कल्याण
- स्वास्थ्य लाभ: उपवासी रहकर और धार्मिक अनुशासन का पालन करके शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। गणेश व्रत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है।
5. पारिवारिक और सामाजिक समरसता
- पारिवारिक एकता: गणेश व्रत के अवसर पर परिवार के सदस्य मिलकर पूजा करते हैं, जिससे पारिवारिक संबंधों में मधुरता और एकता आती है।
- सामाजिक जिम्मेदारी: व्रत के दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को दान और सहायता प्रदान करने से सामाजिक जिम्मेदारी निभाई जाती है।
6. धार्मिक अनुशासन और पुण्य
- धार्मिक पालन: गणेश व्रत धार्मिक अनुशासन और परंपराओं का पालन करने का एक तरीका है। इससे व्यक्ति की धार्मिकता और पवित्रता बढ़ती है।
- पुण्य अर्जन: व्रत के माध्यम से पुण्य की प्राप्ति होती है, जो व्यक्ति के जीवन में अच्छाइयाँ और सुख-समृद्धि लाती है।
7. मन की शांति और संतुलन
- मानसिक शांति: गणेश व्रत के दौरान पूजा और ध्यान करने से मन को शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह तनाव और चिंता को कम करता है।
गणेश व्रत का पालन करके भक्त गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, जिससे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष:
भगवान गणेश जी की पूजा न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा भी देती है। उनकी कृपा से जीवन में समृद्धि, बुद्धि और सफलता प्राप्त होती है। इस पृष्ठ पर दी गई जानकारी से आपको भगवान गणेश जी के बारे में गहन समझ प्राप्त होगी, जिससे आप उनकी पूजा और आदर भाव के साथ जुड़ सकेंगे। गणपति बाप्पा मोरया!
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